विदुर जी को मनुष्य क्यों बनना पड़ा


                                 

मैत्रेय ऋषि कहते है, विदुर जी, मैं आपको पहचानता हूँ। आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं। आप तो यमराज के अवतार है।  मांडव्य ऋषि के शाप के कारण आपका जन्म दासी पुत्र के रूप में शूद्र के घर हुआ है।




एक बार कुछ चोरों ने राजकोष से चोरी की। चोरी करके वे भागने लगे। राजा के सेवकों को इसका समाचार मिला, तो उन्होंने चोरों का पीछा किया। सैनिकों को पीछे आते देखकर चोर घबरा गये। चोरी के माल के साथ भागना मुश्किल था। रास्ते में मांडव्य ऋषि का आश्रम आया। चुराई हुई धन संपत्ति चोरों ने आश्रम में फेंक दी और भाग खडे हुये। राजा के सैनिक पीछा करते हुए आश्रम में आये। वहां राजकोष से चुराई हुई धन संपत्ति को पाकर उन्होंने मान लिया कि यह ऋषि चोर है। उन्होंने ऋषि को पकडा और धन संपत्ति के साथ राजा के समक्ष उपस्थित कर दिया। राजा ने शूली पर लटकाकर देहान्त दण्ड दिया। मांडव्य ऋषि को वध, स्तंभ पर खडा कर दिया गया। वे गायत्री मन्त्र का जाप करने लगे। मांडव्य मरते ही नहीं हैं। ऋषि का दिव्य तेज देखकर राजा को लगा कि ये तो कोई तपस्वी महात्मा हैं। राजा भयभीत हो गया। ऋषि को सूली से नीचे उतारा गया। सारी बात जानकर राजा को दुःख हुआ और पश्चाताप होने लगा कि मैंने निरपराध ऋषि को शूली पर चढ़वाया। उसने मांडव्य ऋषि से क्षमा याचना की।

मांडव्य ऋषि कहते हैं, राजन् तुम्हें तो मैं क्षमा कर सकता हूँ, पर यमराज से पूछूँगा कि मुझे दण्ड क्यों दिया ? मैने कोई पाप नहीं किया था, फिर मुझे यह दँड क्यों दिया गया ? मैं यमराज को क्षमा नहीं कर सकता।

मांडव्य कहते हैं, मुझ निष्पाप को सजा क्यों ? मैं उस न्यायाधीश यमराज को दण्ड दूँगा। अपने चरित्र पर कैसा अटल विश्वास। भरतखण्ड का एक पवित्र संत आज न्यायाधीश से उत्तर मांगने जा रहा है। यमराज की सभा में आकर ऋषि ने यमराज से पूछा कि मैंने जब कोई पाप नहीं किया है, तो मुझे शूली पर क्यों चढाया गया ? शूली पर लटकाने की सजा मुझे मेरे कौन से पाप के लिये दी गयी ? यमराज घबरा गये। उन्होंने सोचा कि यदि कहूँगा कि भूल हो गयी, तो ये मुनि मुझे शाप दे देंगे। अतः उन्होंने ऋषि से कहा कि जब आप तीन बरस के थे, तब आपने एक तितली को कांटा चुभाया था, उसी पाप की यह सजा दी गई थी।

जाने या अनजाने जो भी पाप किया जाये, उसका दण्ड भुगतना ही पडता है। भगवान् पाप को स्वीकार नहीं करते। पुण्य के भोग की इच्छा न करें तो कोई बात नहीं, किन्तु पाप तो भोगना ही पडेगा।

मांडव्य ऋषि ने यमराज से कहा, शास्त्र की आज्ञा है कि यदि अज्ञानावस्था में कोई मनुष्य कुछ पाप करे, तो उसका दँड स्वप्न में दिया जाये। मैं बालक था, अतः अबोध  था। इसलिए उस समय के लिए पाप की सजा मुझे स्वप्न में देनी चाहिए थी।

तुमने मुझे अनुचित दंड दिया है। अतः मैं तुझे शाप देता हूँ कि तुम्हारा जन्म शूद्र योनि में होगा। इस प्रकार मांडव्य ऋषि के शाप के कारण विदुर जी के रूप में यमराज को दासी के उदर से जन्म लेना पडा था।

देव से भूल होने पर उसे मनुष्य बनना पडता है और मनुष्य भूल करे तो उसे चार पाँव वाला पशु बनना पडता है।

विदुर जी कहते हैं कि एक बार मुझसे भूल हो गयी, तो मुझे देव से मनुष्य बनना पडा। अगर अब भी मैं असावधान रहा तो मुझे पशु बनना पडेगा।

                                                         

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